Sardar Vallabhbhai Patel
Sardar Vallabhbhai Patelजन्म शताब्दी विशेष: 1942 में महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत की, जिसमें पटेल ने अहमदाबाद के लोकल बोर्ड मैदान में एक लाख से अधिक लोगों के सामने आंदोलन की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि यदि नेता भी गिरफ्तार हो जाएं, तो जनता की शक्ति इतनी है कि ब्रिटिश शासन को 24 घंटे में चुनौती दी जा सकती है।
वल्लभभाई पटेल का प्रारंभिक जीवन
वल्लभभाई झावेरभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले के कारमसद गांव में हुआ। वे अपने माता-पिता के चौथे पुत्र थे। बचपन से ही उनमें नेतृत्व और न्याय की भावना विकसित हुई। स्कूली दिनों में उन्होंने अपने सहपाठियों के लिए आर्थिक बोझ कम करने के लिए शिक्षक संघ के खिलाफ खड़े होकर अपनी पहली राजनीतिक गतिविधि की। 22 वर्ष की आयु में उन्होंने 10वीं कक्षा पास की और 1908 में इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की। अहमदाबाद में उन्होंने वकालत में अपनी पहचान बनाई और समाज के लिए कई कानूनी लड़ाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सरदार पटेल का राजनीतिक जीवन महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा रहा। 1942 में गांधीजी द्वारा ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा के समय, पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख से अधिक लोगों के सामने आंदोलन की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि यदि नेता गिरफ्तार हो जाएं, तो जनता की शक्ति इतनी है कि ब्रिटिश शासन को 24 घंटे में चुनौती दी जा सकती है। उनके भाषण ने लोगों में उत्साह और विश्वास जगाया।
गृहमंत्री के रूप में भारत का एकीकरण
स्वतंत्रता के बाद, देश के सामने 562 रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने का सबसे बड़ा प्रश्न था। सितंबर 1946 में, जब जवाहरलाल नेहरू की अस्थाई राष्ट्रीय सरकार बनी, पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। उन्होंने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को दूरदर्शिता और रणनीति के साथ पूरा किया। जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर, बड़ौदा और अन्य रियासतों को बिना खून-खराबे के भारतीय संघ में शामिल करना उनके नेतृत्व की मिसाल है।
14 मई 1939 को जानलेवा हमला
14 मई 1939 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण लेकिन कम चर्चित अध्याय सामने आया। इस दिन सरदार पटेल पर एक जानलेवा हमला हुआ। जब वे एक खुले जीप में यात्रा कर रहे थे, तब 57 हथियारबंद हमलावरों ने उन पर हमला किया। इस हमले में दो युवा कार्यकर्ताओं ने अपनी जान की आहुति दी, जिससे सरदार पटेल की जान बच गई।
ब्रिटिश शासन की जांच और सजा
ब्रिटिश शासन ने इस घटना की जांच के लिए विशेष अदालत का गठन किया। 57 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से कुछ को फांसी की सजा दी गई, जबकि अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
इतिहास से हटाए गए पन्ने
इस घटना को इतिहास से हटाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। एक संभावना यह है कि हमलावरों का संबंध मुस्लिम समुदाय से था, और इस तथ्य को उजागर करने से सांप्रदायिक तनाव बढ़ने का डर था। इसके अलावा, यह घटना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर भी विवाद का कारण बन सकती थी।
सरदार पटेल का सामाजिक योगदान
सरदार पटेल का योगदान केवल राजनीतिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और गांधी स्मारक निधि की स्थापना जैसे कार्य किए। गोवा को भारत में विलय कराने की उनकी इच्छा भी मुखर थी।
सरदार पटेल का निजी जीवन और निधन
सरदार पटेल का जीवन सादगी और नैतिक मूल्यों पर आधारित था। उन्होंने कभी व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता नहीं दी। 15 दिसंबर 1950 को उनका निधन हुआ। उनकी दृढ़ता और नैतिकता के कारण ही उन्हें लौह पुरुष कहा जाता है। उनका प्रसिद्ध नारा, 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' आज भी देशवासियों को एकता का संदेश देता है।
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